Vishwakarma Puja 2025: 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व जानें

विश्वकर्मा पूजा 2025 हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो भगवान विश्वकर्मा को समर्पित है। इस वर्ष विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर 2025 को बुधवार के दिन मनाई जाएगी। यह तिथि कन्या संक्रांति के साथ जुड़ी हुई है, जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है। विभिन्न स्रोतों से पुष्टि हुई है कि यह त्योहार हर साल सितंबर महीने में इसी समय के आसपास आता है, और 2025 में यह 17 सितंबर को पड़ रही है।

विश्वकर्मा जयंती के रूप में भी जाना जाने वाला यह पर्व शुभ मुहूर्त में पूजा करने का अवसर प्रदान करता है। शुभ मुहूर्त के अनुसार, कन्या संक्रांति का क्षण 17 सितंबर को सुबह लगभग 1:55 बजे से शुरू होता है। इसके अलावा, ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:33 बजे से 5:20 बजे तक, विजय मुहूर्त दोपहर 2:18 बजे से 3:07 बजे तक और शाम का मुहूर्त 6:24 बजे से 7:34 बजे तक उपलब्ध है। पूजा आमतौर पर सुबह या शाम के समय की जाती है, जहां भक्त अपने औजारों और मशीनों की पूजा करते हैं। इन मुहूर्तों का पालन करने से पूजा का फल अधिक प्राप्त होता है, जैसा कि ज्योतिषीय परंपराओं में वर्णित है।

भगवान विश्वकर्मा को ब्रह्मांड का दिव्य वास्तुकार माना जाता है। वे वास्तु शास्त्र, यांत्रिकी और इंजीनियरिंग के जनक हैं। ऋग्वेद में उनका उल्लेख है कि उन्होंने ब्रह्मा जी की सहायता के लिए दुनिया का खाका तैयार किया। वे स्वर्गलोक, द्वारका शहर, इंद्रप्रस्थ महल, स्वर्ण लंका और विभिन्न दिव्य हथियारों जैसे विष्णु का सुदर्शन चक्र, शिव का त्रिशूल और कार्तिकेय का शक्ति अस्त्र के रचयिता हैं। विश्वकर्मा पूजा का महत्व इसलिए है क्योंकि यह शिल्पकारों, इंजीनियरों, कारीगरों और औद्योगिक श्रमिकों के लिए समर्पित है। इस दिन पूजा करने से व्यवसाय में सफलता, समृद्धि और सुरक्षा प्राप्त होती है। यह त्योहार कौशल, मेहनत और रचनात्मकता का प्रतीक है, जो आधुनिक तकनीक और उद्योग में मानवीय योगदान की याद दिलाता है। भारत में यह एक प्रतिबंधित छुट्टी है, जबकि नेपाल में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाता है।

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पूजा विधि सरल और व्यवस्थित है। भक्त सुबह स्नान करके खुद को शुद्ध करते हैं। कार्यस्थल, मशीनें और औजारों को साफ-सफाई करके फूलों और आम की पत्तियों से सजाते हैं। प्रवेश द्वार पर रंगोली बनाई जाती है। पूजा स्थल पर कलश स्थापित किया जाता है, जिसमें केले की पत्तियां लगाई जाती हैं। भगवान विश्वकर्मा और विष्णु की मूर्ति स्थापित कर कुमकुम, चावल, फूल, फल, गुड़, मिठाई, सुपारी, धूप, राखी, दही आदि चढ़ाए जाते हैं। मंत्र जाप जैसे ‘ओम श्री सृष्टनाय सर्वसिद्धाय विश्वकर्माय नमो नमः’ या ‘ओम विश्वकर्मणे नमः’ किया जाता है। औजारों पर तिलक लगाकर फूल चढ़ाए जाते हैं, उसके बाद आरती की जाती है और प्रसाद वितरित किया जाता है। कुछ स्थानों पर पतंग उड़ाने की परंपरा भी है, विशेषकर बंगाल में। इस दिन मशीनों का उपयोग न करने और श्राद्ध पूजा करने की सलाह दी जाती है।

विश्वकर्मा पूजा 2025 न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह व्यावसायिक क्षेत्र में प्रगति और नवाचार को प्रोत्साहित करती है। भक्त इस अवसर पर अपने कार्यक्षेत्र में सकारात्मक वातावरण बनाते हैं और कर्मचारियों को भोजन या उपहार देते हैं। यह त्योहार प्राचीन परंपरा और आधुनिक जीवनशैली का मिश्रण है, जो सभी को अपनी कला और कौशल की पूजा करने के लिए प्रेरित करता है।

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