SEBI का बड़ा फैसला: नॉमिनी से वारिस को शेयर ट्रांसफर पर कैपिटल गेन टैक्स से छूट

सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण सर्कुलर जारी किया है, जो निवेशकों के लिए उत्तराधिकार प्रक्रिया को आसान बनाने का काम करेगा। यह बदलाव विशेष रूप से नॉमिनी से लीगल हेयर को शेयर ट्रांसफर के दौरान लगने वाले कैपिटल गेन टैक्स की समस्या को दूर करेगा। SEBI ने इस बदलाव की घोषणा 19 सितंबर, 2025 को की, और यह 1 जनवरी, 2026 से प्रभावी होगा। इस कदम से निवेशकों को अनावश्यक कर बोझ से राहत मिलेगी और शेयर ट्रांसफर की प्रक्रिया अधिक सुगम हो जाएगी।

पहले की व्यवस्था में, जब कोई सिक्योरिटी होल्डर की मृत्यु हो जाती है, तो नॉमिनी सिक्योरिटीज के ट्रस्टी के रूप में काम करता है और उन्हें लीगल हेयर को ट्रांसफर करता है। हालांकि, कई मामलों में इस ट्रांसफर को ‘ट्रांसफर’ मानकर कैपिटल गेन टैक्स लगा दिया जाता था, जबकि इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 47(iii) के तहत ऐसी ट्रांसमिशन को कर से छूट प्राप्त है। नॉमिनी को बाद में रिफंड क्लेम करना पड़ता था, जो एक परेशानी भरी प्रक्रिया होती थी। SEBI ने इस समस्या को पहचानते हुए एक वर्किंग ग्रुप गठित किया, जो सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (CBDT) के साथ मिलकर काम कर रहा था। इस ग्रुप की सिफारिशों के आधार पर नया नियम लागू किया गया है।

नए नियम के तहत, रिपोर्टिंग एंटिटी जैसे रजिस्ट्रार टू एन इश्यू एंड शेयर ट्रांसफर एजेंट्स (RTAs), लिस्टेड कंपनियां, डिपॉजिटरीज और डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट्स को CBDT को रिपोर्टिंग करते समय एक स्टैंडर्ड रीजन कोड ‘TLH’ (ट्रांसमिशन टू लीगल हेयर्स) का उपयोग करना होगा। यह कोड सुनिश्चित करेगा कि लीगल हेयर को शेयर ट्रांसफर पर कैपिटल गेन टैक्स न लगे और इनकम टैक्स एक्ट की छूट का सही तरीके से पालन हो। SEBI के सर्कुलर में कहा गया है कि इस बदलाव का उद्देश्य ट्रांसमिशन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना और कर संबंधी मुद्दों को हल करना है। सभी संबंधित संस्थाओं को 1 जनवरी, 2026 तक अपने सिस्टम में आवश्यक बदलाव करने के निर्देश दिए गए हैं।

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यह बदलाव निवेशकों के हितों की रक्षा करेगा और बाजार के विकास को बढ़ावा देगा। SEBI के अनुसार, मौजूदा प्रक्रियात्मक आवश्यकताएं जैसे SEBI (लिस्टिंग ऑब्लिगेशंस एंड डिस्क्लोजर रिक्वायरमेंट्स) रेगुलेशंस, 2015 और RTAs के लिए मास्टर सर्कुलर 23 जून, 2025 के अनुसार लागू रहेंगी। इस सर्कुलर को SEBI एक्ट, 1992 की धारा 11(1), डिपॉजिटरीज एक्ट, 1996 की धारा 19 और अन्य संबंधित रेगुलेशंस के तहत जारी किया गया है। इससे पहले, SEBI ने 12 अगस्त को एक कंसल्टेशन पेपर जारी किया था और स्टेकहोल्डर्स से फीडबैक मांगा था।

इस नियम से लीगल हेयर को शेयर ट्रांसफर में पारदर्शिता आएगी और अनावश्यक देरी से बचा जा सकेगा। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम उत्तराधिकार योजना को मजबूत बनाएगा। SEBI की वेबसाइट पर इस सर्कुलर की पूरी जानकारी उपलब्ध है। कुल मिलाकर, यह बदलाव भारतीय शेयर बाजार में निवेशकों की सुविधा बढ़ाने वाला एक सकारात्मक कदम है।

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