अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में H-1B वीजा कार्यक्रम पर एक बड़ा बदलाव किया है। एक एक्जीक्यूटिव ऑर्डर के जरिए उन्होंने H-1B वीजा स्पॉन्सरशिप के लिए सालाना 1 लाख डॉलर (करीब ₹88 लाख) की नई फीस लगाई है। यह फैसला न केवल नए आवेदकों बल्कि पहले से मौजूद H-1B वीजा धारकों पर भी लागू होगा। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि यह कदम अमेरिकी नौकरियों की रक्षा के लिए उठाया गया है, लेकिन इससे भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स पर भारी असर पड़ने की आशंका है।
H-1B वीजा एक गैर-आप्रवासी वीजा है, जो विशेषज्ञ पेशेवरों को अमेरिका में तीन से छह साल तक काम करने की अनुमति देता है। पहले इसकी फीस 2,000 से 5,000 डॉलर तक होती थी, जो नियोक्ता के आकार पर निर्भर करती थी। लेकिन अब यह फीस 10 गुना बढ़कर 1 लाख डॉलर हो गई है। महत्वपूर्ण बात यह है कि लगभग सभी H-1B वीजा फीस नियोक्ताओं या कंपनियों द्वारा ही चुकाई जाती हैं। कर्मचारियों को सीधे कोई फीस नहीं देनी पड़ती, लेकिन बढ़ी हुई लागत कंपनियों के बजट पर बोझ डाल सकती है, जो अप्रत्यक्ष रूप से कर्मचारियों की भर्ती या वेतन पर प्रभाव डाल सकती है।
यह बदलाव 21 सितंबर से लागू हो रहा है, जो एक दिन का ही नोटिस पीरियड है। अमेरिका में H-1B वीजा पर निर्भर 70 प्रतिशत कर्मचारी भारतीय हैं, खासकर आईटी और टेक्नोलॉजी सेक्टर से। भारतीय आईटी कंपनियां जैसे इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो, जो अमेरिकी क्लाइंट्स के लिए काम करती हैं, इस फीस से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इससे हजारों भारतीय प्रोफेशनल्स की नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं।
भारतीय सरकार ने इस फैसले पर चिंता जताई है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि इससे ‘मानवीय परिणाम’ हो सकते हैं। भारत की प्रमुख व्यापार संस्था नासस्कॉम ने इसे ‘चिंताजनक’ बताया है और कहा कि इतने कम समय में लागू करने से कंपनियों को मुश्किल होगी। सोशल मीडिया पर भी भारतीय यूजर्स ने इसकी आलोचना की है, जहां कई पोस्ट्स में इसे भारतीय युवाओं के सपनों पर चोट बताया गया है।
ट्रंप का यह कदम उनके ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का हिस्सा है, जो कुशल विदेशी श्रमिकों को सीमित करने का प्रयास करता है। हालांकि, टेक कंपनियां जैसे अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा, जो H-1B पर निर्भर हैं, इसका विरोध कर सकती हैं। भारत सरकार अब कूटनीतिक स्तर पर इस मुद्दे को उठाने की योजना बना रही है, ताकि भारतीय टैलेंट की सुरक्षा सुनिश्चित हो।
कुल मिलाकर, H-1B स्पॉन्सरशिप कॉस्ट में यह उछाल US वीजा फीस को नया रूप दे रहा है। कंपनियों को यह बोझ उठाना पड़ेगा, लेकिन लंबे समय में यह भारतीय आईटी वर्कर्स के अवसरों को प्रभावित कर सकता है। स्थिति पर नजर बनी हुई है।